Monday, June 7, 2010

इन्तिज़ार कब तक हम करेंगे भला................

साथी तुम फिर कब आओगे ?
मेरे सुर में ताल मिला कर
गीत मिलन के कब गाओगे
साथी तुम फिर कब आओगे ?  

हर आहट तेरी लगती है
तुझ बिन कली शूल लगती है
कब मेरे तपते चेहरे पर
शीतल आँचल लहराओगे
साथी तुम फिर कब आओगे ?

तुम ही थे जिससे मै अपना 
हर दुःख दर्द बता सकता था
तुम ही थे जिसके पहलू में 
मै हर कष्ट भुला सकता था 
अपने पहलू में सर रख कर 
केश मेरे कब सहलाओगे
साथी तुम फिर कब आओगे ?

चले गए तुम किस दुनिया में 
सूना करके शहर हमारा 
एक बार भी मुड़े नहीं तुम 
मैंने तुमको बहुत पुकारा
क्या अपराध ! दंड ये कैसा ?
कब तुम मुझको बतलाओगे
साथी तुम फिर कब आओगे ?

कहाँ गई वो शपथ तुम्हारी 
मौत तलक ना भूलेंगे
 कहाँ गए वो कसमे वादे
साथ कभी बना छोड़ेगे 
आकर इस सूने जीवन में 
कब मेरे हो जाओगे
साथी तुम फिर कब आओगे ?

सुनते हैं दुनिया में साथी 
लौट न आये जाने वाला
सच भी हो मै नहीं मानता
है कैसा दस्तूर निराला
वर्षों का ये सत्य शाश्वत
आकर तुम कब झुठलाओगे 
साथी तुम फिर कब आओगे ?
मेरे सुर में ताल मिला कर 
गीत मिलन के कब गाओगे.......

(Dr.R.Kant)