Tuesday, August 10, 2010

तुम ही बोलो क्या क्या लिख दूं ?


दिल कहता है ये भी लिख दूं 

दिल कहता है वो भी लिख दूं l

इस कागज़ के इक टुकड़े पर

तुम ही बोलो क्या क्या लिख दूं l

बस तुम पढ़ती या मै पढता

तो पूंछो मत क्या क्या लिखता l

पर पढ़ना है इस दुनिया को

किन हांथों से कितना लिख दूं l
................

ये अश्क स्याह हो जाने दो

ये वादा है हर बात लिखूंगा ,

तुम बोलोगी जब दिन तो दिन

तुम चाहोगी तो रात लिखूंगा l

तुम उतरी हो जब से दिल में

उस हर पल का एहसास लिखूंगा ,

था दूर दूर जीना तो क्या

ये दिल था कितने पास लिखूंगा l

मैं आँखों में अपनी भरकर

वो तेरे सारे ख्वाब लिखूंगा ,

कजरारी प्यारी आँखों में 


मोती पाले हैं आप लिखूंगा l

हैं बिखरी शबनम गालों पे

हर तन्हाई की रात लिखूंगा ,

ये होंठ गुलाबी हँस दें तो

मै सावन की बरसात लिखूंगा l

तुम काँधे पर सर रख देना

मैं जुल्फों का एहसास लिखूंगा ,

तुम सिमटी रहना बांहों में

मै धड़कन की आवाज़ लिखूंगा l

चाँद चांदनी का क्या करना

हम तुम और वो रात लिखूंगा ,

लिखना और बहुत कुछ भी है

मै तेरी हर सौगात लिखूंगा l

रातें गुजरेंगी बातों में

मै रोज़ नया इतिहास लिखूंगा ,

ये अश्क स्याह हो जाने दो

ये वादा है हर बात लिखूंगा l

तुम बोलोगी जब दिन तो दिन

तुम चाहोगी तो रात लिखूंगा ll 


राज़

मेरा दोष ?

चन्दा मेरा यही दोष क्या 
मैंने तुझसे प्यार किया  ?
जाग जाग कर सारी रैना
 बस तेरा दीदार किया ?
नहीं प्रेम के कायल था मै
तो तू मुझसे कह देता ,
अपने निष्ठुर भाग्य चक्र का
यह दुःख भी मै सह लेता I
जब तुम ऐसे मौन रहे 
मैंने समझा इकरार किया I
चन्दा मेरा यही दोष क्या 
मैंने तुझसे प्यार किया  ? 
तेरा मेरा मिलन असंभव 
क्यूं तू मुझसे कहता है ?
माना मै धरती का प्राणी
नील गगन में तू रहता है I
दृढ प्रतिज्ञ जो बढ़ा पंथ  पर
लक्ष्य उसी ने प्राप्त किया II
चन्दा मेरा यही दोष क्या 
मैंने तुझसे प्यार किया  ?
नील गगन तुझको यदि प्यारा
धरती मेरी माता है,
तुझसे कहीं अधिक बढ़कर है
माता से जो नाता है I
गगन सितारे तुम मत त्यागो 
मैंने तुमको त्याग दिया II
चन्दा मेरा यही दोष था
मैंने तुझसे प्यार किया I
सच मुच मेरा यही दोष था 
मैंने तुमसे प्यार किया II
राज़ 

-- 

Monday, June 7, 2010

इन्तिज़ार कब तक हम करेंगे भला................

साथी तुम फिर कब आओगे ?
मेरे सुर में ताल मिला कर
गीत मिलन के कब गाओगे
साथी तुम फिर कब आओगे ?  

हर आहट तेरी लगती है
तुझ बिन कली शूल लगती है
कब मेरे तपते चेहरे पर
शीतल आँचल लहराओगे
साथी तुम फिर कब आओगे ?

तुम ही थे जिससे मै अपना 
हर दुःख दर्द बता सकता था
तुम ही थे जिसके पहलू में 
मै हर कष्ट भुला सकता था 
अपने पहलू में सर रख कर 
केश मेरे कब सहलाओगे
साथी तुम फिर कब आओगे ?

चले गए तुम किस दुनिया में 
सूना करके शहर हमारा 
एक बार भी मुड़े नहीं तुम 
मैंने तुमको बहुत पुकारा
क्या अपराध ! दंड ये कैसा ?
कब तुम मुझको बतलाओगे
साथी तुम फिर कब आओगे ?

कहाँ गई वो शपथ तुम्हारी 
मौत तलक ना भूलेंगे
 कहाँ गए वो कसमे वादे
साथ कभी बना छोड़ेगे 
आकर इस सूने जीवन में 
कब मेरे हो जाओगे
साथी तुम फिर कब आओगे ?

सुनते हैं दुनिया में साथी 
लौट न आये जाने वाला
सच भी हो मै नहीं मानता
है कैसा दस्तूर निराला
वर्षों का ये सत्य शाश्वत
आकर तुम कब झुठलाओगे 
साथी तुम फिर कब आओगे ?
मेरे सुर में ताल मिला कर 
गीत मिलन के कब गाओगे.......

(Dr.R.Kant)






Sunday, April 25, 2010

"तो घर चलूँ"

यादों का बोझ अपनी उठा लूँ तो घर चलूँ
इस आख़िरी ख़त को भी जला लूँ तो घर चलूँ

पैरों तले कुचल न कहीं जाए जमीं पर
परछाइयां अपनी मै छुपा लूं तो घर चलूँ

हर शख्श इस शहर में मुझे जानता है खूब
पहचान रहगुजर से मिटा लूं  तो घर चलूँ

रूस्वा हुए हैं इश्क में ये गम नहीं मुझे
ये दाग़े बेवफाई जो  मिटा लूं तो घर चलूँ

खामोश लब हुए भी कई साल हो गए
ये दस्ताने गम मै गुनगुना लूं तो घर चलूँ

कैसे हुआ ये हादसा सब पूंछते हैं लोग
झूंठी कोई भी बात बना लूं तो घर चलूँ

Saturday, April 10, 2010

प्रश्न ( ?? )


Thursday, April 8, 2010

" रेत सा जीवन मेरा "


मै खडा हूँ ,महल पर
रेत के
टूटता बिखरता
प्रति छन प्रति पल
जैसे कर देगा नष्ट
मेरे समूचे अस्तित्व को!
ठीक ही तो है
कैसा जीवन?
क्या उद्देश्य?
बार बार मरना
मर कर जीना
हजार बार
और फिर मर जाना हर गम के साथ
बस इतना जीवन का सार!
सीमित प्रतिबंधित
पतन के गर्त में
बढ़ता
प्रति छन प्रतिपल
इसी रेत के महल की भांति
टूटता बिखरता गिरता
प्रति छन प्रतिपल
प्रतिपल प्रति छन!
--------------------------
" राज"/ 


" ये किसे डाल दी वरमाला ??? "


मै भी तेरा हो सकता था ,
तेरे सब दुःख सह सकता था /
पर तूने ये क्या कर डाला ,
ये किसे डाल दी वरमाला ???

जो शीश झुकाए रहता था
जो कभी नहीं कुछ कहता था
वह शीश कलम ही कर डाला
ये किसे डाल दी वरमाला ??

तूफाँ की काली रातों में
जो प्रेम का दीप जलाए था
जो पलक बिछाए राहों में
बस तेरी आस लगाए था
वह जीवन सूना कर डाला
ये किसे डाल दी वरमाला ??

अब शेष नहीं कुछ जीवन में
यह दिल तो एक मरुस्थल है
जब नहीं सीचना था तुमको
ये प्रेम बीज क्यों बो डाला
ये किसे डाल दी वरमाला ??

मै जलता हूँ ये फिक्र नहीं
अब भी तेरी ही चिंता है
कहीं तुझको भस्म न कर डाले
मेरी प्रेम विरह की ये ज्वाला
ये किसे डाल दी वरमाला ??

राज /