Thursday, April 8, 2010

" रेत सा जीवन मेरा "


मै खडा हूँ ,महल पर
रेत के
टूटता बिखरता
प्रति छन प्रति पल
जैसे कर देगा नष्ट
मेरे समूचे अस्तित्व को!
ठीक ही तो है
कैसा जीवन?
क्या उद्देश्य?
बार बार मरना
मर कर जीना
हजार बार
और फिर मर जाना हर गम के साथ
बस इतना जीवन का सार!
सीमित प्रतिबंधित
पतन के गर्त में
बढ़ता
प्रति छन प्रतिपल
इसी रेत के महल की भांति
टूटता बिखरता गिरता
प्रति छन प्रतिपल
प्रतिपल प्रति छन!
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" राज"/ 


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