यादों का बोझ अपनी उठा लूँ तो घर चलूँ
इस आख़िरी ख़त को भी जला लूँ तो घर चलूँ
पैरों तले कुचल न कहीं जाए जमीं पर
परछाइयां अपनी मै छुपा लूं तो घर चलूँ
हर शख्श इस शहर में मुझे जानता है खूब
पहचान रहगुजर से मिटा लूं तो घर चलूँ
रूस्वा हुए हैं इश्क में ये गम नहीं मुझे
ये दाग़े बेवफाई जो मिटा लूं तो घर चलूँ
खामोश लब हुए भी कई साल हो गए
ये दस्ताने गम मै गुनगुना लूं तो घर चलूँ
कैसे हुआ ये हादसा सब पूंछते हैं लोग
झूंठी कोई भी बात बना लूं तो घर चलूँ
Sunday, April 25, 2010
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pairon tale kaahin kuchaal na jaye jamin ,
ReplyDeleteprchhaiyaan apni main chhupa lu to ghar chalun...
kya baat kaah di aapne..ufff behadd umda.