Thursday, April 8, 2010

"वक्त से पहले बड़ा"


टायरों से पटी झोपडी में
जन्मा वह धरती के बोझ की तरह
फटे आँचल में छिपाकर मुंह
पीता रहा दूध
जैसे बचना चाहता हो
समाज की जिम्मेदारियों से
बढ़ता रहा समय की गलियों में
खाते हुए धक्के
धीरे धीरे पहुँच गया
घर से गलियों तक
सीख गया
खेलना कंचे गिल्ली
दीन दुनिया के जाल से दूर
मस्त अपने खेल में खो गया
पर जल्द ही उसे एहसास हो गया
जब रख दी गई
उसके छोटे काँधों पर कुल्हाड़ी
और बता दिया गया उसे
जंगल का रास्ता
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अल्ल्हड़ धूल भरी राँहों पर
चौड़े बिवाईं भरे पैरों से
थका थका घर लौटा वह
बैठ गया धम्म से
एक ओर पटक कर गट्ठर
देखने लगा गली में
खेलते बच्चों को
उछालते कंचे गिल्ली
और पूंछा अपने आपसे
"कल मै भी तो था इनमे '
"अरे ! कल ही तो मै खेल रहा था इनमें!"
कानों से आवाज टकराई
"कल तू बच्चा था पर
आज हो गया है बड़ा"
"कैसे?"प्रश्न किया उसने
"अरे वही तो हूँ मै!
मुझमें जीवित है
वही बच्चा उछालता कंचे '
आवाज फिर आई
"तो चीर डाल..
अपने अन्दर के बच्चे कको
इस तेज़ कुल्हाड़ी से !
तेरे बाप की बीमारी
और भाइयों की बिलखती भूख
ने बना दिया है तुझे बड़ा
वक्त से पहले बड़ा
वक्त से बहुत पहले !!"

"राज "

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