Thursday, April 8, 2010

" फ़कीर...."


मै तो खुद फ़कीर हूँ
रेत की लकीर हूँ
क्या मिलेगा तुम्हे मुझसे
बादलों से आस जैसे
ना पता है ना ठिकाना
कब कहाँ है किधर जाना
भाप बनकर उड़ गया जो
मै वो सतही नीर हूँ
रेत की लकीर हूँ

है निराशा का अन्धेरा
जंगलों में वास मेरा
क्यों मेरी पीड़ा सहो तुम
इस जहां से क्यों लड़ो तुम
मझे रहने दो अकेले
हर लहर बस दूर ठेले
आंसुओं से कागजों पर
मै लिखी तकदीर हूँ
रेत की लकीर हूँ

इस धरा का शाप हूँ मै
राम का वनवास हूँ मै
सिसकती पति की चिता पर
नव वधू की त्रास हूँ मै
आसुओं के संग बहा दो
मै हूँ बीता कल भुला दो
युद्ध से भागा हुआ हूँ
मत समझ मै वीर हूँ
रेत की लकीर हूँ

मानता मै दोष मेरा
शेष है प्रतिशोध तेरा
दंड ही मेरी नियति है
चीख कर कहती प्रकृति है
ख़ाक में मुझको मिला दो
ठोकरों के संग उड़ा दो
राख की प्राचीर हूँ
रेत की लकीर हूँ
मै तो खुद फ़कीर हूँ
.............................
"राज "

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